Sunday, December 26, 2010

क्या आज का मानव सच में मजबूर है ?

क्या आज का मानव सच में मजबूर है ???

अज्ञानता व ऐश्नाओं के वशीभूत हो मानव  
भटक रहा है चंद चांदी के चमकते सिक्कों की तलाश में,  
छीन ली है जिसने उससे  
उसका सुकून और उसकी मानवता ! 
सुकून और मानवता विहीन मानव  
क्या मानव रह गया है
चेतनाशून्य और आत्मविस्मृत मानव !!  
अपनी इस अवचेतन अवस्था में वह 
दास नहीं तो क्या ?? 
विद्रोह ! 
विद्रोह तो वह करता है जो चैतन्य होता है,   
धिक्कारती हो जिसे उसकी आत्मा ?
परन्तु  
आत्मविस्मृति के दौर से गुजरने वाला मानव  
और  
उससे निर्मित समाज  
क्या कभी विद्रोह या आन्दोलन कर पायेगा ?? 
आखिर  
इसकी जड़ में क्या है ?
जानना होगा जड़ को
समझना पड़ेगा मूल को
कहीं इन सबके मूल में भूख तो नहीं
यह बात दीगर है कि 
भूख की जाति क्या है ?
जाति !! 
सुना था मानव की जाति के बारे में,  
परन्तु ये भूख की भी जाति होने लगी क्या ?? 
हाँ 
भूख की भी जाति होती है! 
जिनकी भूख दो रोटी की होती है 
वह जवान होती है कठिन उपवासों के बीच पलकर 
और  
देखती हैं आँखें फाड़ फाड़कर. 
परन्तु  
जिनकी भूख आकाश कुसुम की होती है
धरती पर स्वर्ग की होती है  
वह परवान चढ़ती है वातानुकूलित शीश महलों में
देखती हैं आँखे तरेर कर  
और रचती हैं कुचक्र  
दो रोटी के भूख वालों की जिंदगी को निगलने का. 
भूख के सताए लोगों ने  
ओढ़ ली है चादर अज्ञानता का, मजबूरी का   
और 
ओढ़कर चैतन्य शून्य हो गए से लगते हैं. 
सच क्या है यह तो वही जाने 
जो अज्ञानी होने का नाटक कर रहे हैं
अवचेतन  होने  का  ढोंग  कर  रहे  हैं

जन्मदिन



भारत माँ के उन सभी सपूतों के जन्म दिवस पर जिन्होंने भारत माँ की अहर्निश सेवा की :

दिन बीतता है, रातें बीतती हैं.


बसंत की परिणति हो जाती है बरसात के रूप में,


समय का पहिया घूमता है और घूमता ही चला जाता है,


बदलती जा रही हैं कैलेंडर की तारीखें अपनी निरंतरता लिए,


परिवर्तन अच्छे के लिए ही होता है,


बुरे विचारों का बदलना अच्छा होता है व्यक्ति, समाज और देश के लिए.


परन्तु


अच्छे विचारों का बदल जाना दुखदायी होता है व्यक्ति, समाज और देश के लिए.


जन्मदिन आते हैं, चले जाते हैं


पर


अपने पीछे छोड़ जाती हैं कुछ यादें


जिसको संबल बना इन्सान


भविष्य के मंजिल तक की दूरी तय करने की सोचता है .


आने वाला कल एक नई मुस्कान और एक नया उमंग लेकर आये


और


राष्ट्र-जीवन को चंहु ओर से सुवाषित करता रहे सदैव.


ऐसी आशा, आकांक्षा और ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आपके जन्मदिन पर


आपका
अरविन्द पाण्डेय

जन्मदिन

भारत माँ के उन सभी सपूतों के जन्म दिवस पर जिन्होंने भारत माँ की अहर्निश सेवा की :

दिन बीतता है, रातें बीतती हैं.
बसंत की परिणति हो जाती है बरसात के रूप में,
समय का पहिया घूमता है और घूमता ही चला जाता है,
बदलती जा रही हैं कैलेंडर की तारीखें अपनी निरंतरता लिए,
परिवर्तन अच्छे के लिए ही होता है,
बुरे विचारों का बदलना अच्छा होता है व्यक्ति, समाज और देश के लिए.
परन्तु
अच्छे विचारों का बदल जाना दुखदायी होता है व्यक्ति, समाज और देश के लिए.
जन्मदिन आते हैं, चले जाते हैं
पर
अपने पीछे छोड़ जाती हैं कुछ यादें
जिसको संबल बना इन्सान
भविष्य के मंजिल तक की दूरी तय करने की सोचता है .
आने वाला कल एक नई मुस्कान और एक नया उमंग लेकर आये
और
राष्ट्र-जीवन को चंहु ओर से सुवाषित करता रहे सदैव.
ऐसी आशा, आकांक्षा और ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ आपके जन्मदिन पर
आपका
अरविन्द पाण्डेय
एक झंडा आठ गुंडे चार मोटर कार दे!!!!!! 

हे प्रभु आनंद मय मुझको यही उपहार दे! 
सुबह उठते ही मुझे ताज़ा कोई अखबार दे!!
पुष्प चन्दन धुप तुलसी आप ही ले लीजिये! 
हज़ार रुपये के नोट जितने हों मुझे दे दीजिये!! 
आप के भंडार में धन द्रव्य की सीमा नहीं !
पर आपने मेरे लिए भेजा कोई बीमा नहीं !!
और हमारा कौन है सब कुछ हमारे आप हैं !
आप हमारे बाप के भी बाप के भी बाप हैं!! 
दो आशीष पुरे मुझे दो चार सौ बरस जीता रहूँ! 
ब्लैक रिश्वत की कृपा से जेब को भरता रहूँ !!
एक झंडा आठ गुंडे चार मोटर कार दे !
हे प्रभु आनंद मय मुझको यही उपहार दे!!
(एक अनाम गीतकार की यह रचना जिन्हें मैं नहीं जानता परन्तु विगत ३० वर्षों से लोगों को सुना रहा हूँ, भारत के उन तमाम सपूतों को समर्पित है जो सामाजिक, राजनीति, प्रशासनिक, न्यायिक एवं पत्रिकारिता आदि सेवाओं में योगदान करते हुए अपनी मातृभूमि का बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं) सभी बंधुओं, भगिनियों, मित्रों आदि को सुप्रभातं !